Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


किस्मत

२)
बच्चे खाना खाकर, समय से आध घंटे पहले ही स्कूल पहुँच गए । खाना बनाकर जब मुन्नी की माँ हाथ धो रही थीं तब उनके पति रामकिशोर मुवक्किलों से किसी प्रकार की छुट्टी पाकर घर आए । सुनसान घर देखकर बोले–बच्चे कहाँ गये सब ?
नथुने फुलाती हुई मुन्नी की माँ ने कहा-“स्कूल गए; और कहाँ जाते ? कितना समय हो गया; कुछ ख़बर, भी है ?”
घड़ी निकाल कर देखते हुए रामकिशोर बोले-“अभी साढ़े नौ ही तो बजे हैं मुझे कचहरी भी तो जाना है न ?”

मुन्नी की माँ तड़प कर बोली-“जरूर तुमने सुन लिया होगा ? दुलारी बहू ने नौ कहा था और तुम साढ़े नौ पर पहुँच गये तो इतना ही क्या कम किया ? तुम उसकी बात कभी झूठी होने दोगे ? मैं तो कहती हूं कि इस घर में नौकर-चाकर तक का मान मुलाहिजा है, पर मेरा नहीं । सब सच्चे और मैं झूठी, कहके मुन्नी की माँ जोर से रोने लगी।"
-"मैं तो यह नहीं कहता कि तुम झूठी हो; घड़ी ही गलत हो गई होगी ? फिर इसमें रोने की तो कोई बात नहीं है।"

कहते-कहते रामकिशोर जी स्नान करने चले गए। वे अपनी स्त्री के स्वभाव को अच्छी तरह जानते थे । किशोरी के साथ वह कितना दुर्व्यवहार करती है, यह भी उनसे छिपा न था । जरा-जरा सी बात पर किशोरी को मार देना और गाली दे देना तो बहुत मामूली बात थी । यही कारण था कि बहू के प्रति उनका व्यवहार बड़ा ही आदर और प्रेम पूर्ण होता । किशोरी उनके पहिले विवाह की पत्नी के एक मात्र बेटे की बहू थी । विवाह के कुछ ही दिन वाद निर्दयी विधाता ने बेचारी किशोरी का सौभाग्य-सिन्दूर पोंछ दिया। उसके मायके में भी कोई न था । वह अभागिनी विधवा सर्वथा दया ही की पात्र थी। किन्तु ज्यों-ज्यों मुन्नी की मां देखतीं कि रामकिशोर जी का व्यवहार बहू के प्रति बहुत ही स्नेह-पूर्ण होता है त्यों-त्यों किशोरी के साथ उनका द्वेष भाव बढ़ता ही जाता । रामकिशोर अपनी इस पत्नी से बहुत दबते थे; इन सब बातों को जानते हुए भी वह किशोरी पर किए जाने वाले अत्याचारों को रोक न सकते थे। सौ की सीधी बात तो यह थी कि पत्नी के खिलाफ कुछ कह के वे अपनी खोपड़ी के बाल न नुचवाना चाहते थे। इसलिए बहुधा वे चुप ही रह जाया करते थे।

आज भी जान गए कि कोई बात जरूर हुई है और किशोरी को ही भूखी-प्यासी पड़ा रहना पड़ेगा। इसलिए कचहरी जाने से पहिले किशोरी के कमरे की तरफ़ गए और कहते गए कि “भूखी न रहना बेटी ! रोटी ज़रूर खा लेना नहीं तो मुझे बड़ा दुःख होगा।"
“रोटी जरूर खा लेना नहीं तो मुझे बड़ा दुःख होगा।"

रामकिशोर का यह वाक्य मुन्नी की मां ने सुन लिया। उनके सिर से पैर तक आग लग गई, मन ही मन सोचा । “इस चुड़ैल पर इतना प्रेम ! कचहरी जाते-जाते उसका लाड़ कर गए; खाना खाने के लिए खुशामद कर गए; मुझसे बात करने की भी फुर्सत न थी ? खायगी खाना, देखती हूँ, क्या खाती है ? अपने बाप का हाड़ !”

मुन्नी की मां ने खाना खा चुकने के बाद, सब का सब खाना उठा कर कहारिन को दे दिया और चौका उठाकर बाहर चली गई । किशोरी जब चौके में गई तो सब बरतन खाली पड़े थे । भात के बटुए में दो तीन कण चावल के लिपटे थे। किशोरी ने उन्हीं को निकाल कर मुँह में डाल लिया और पानी पी कर अपनी कोठरी में चली आई।

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